मंगलवार, 18 जून 2019

संसदीय मर्यादाओं का खुला ऊलंघन।

भारत के संविधान के अनुच्छेद-99 में संसद के नवनिर्वाचित सदस्यों के शपथग्रहण का उल्लेख है। अनुच्छेद कहता है: 'संसद के प्रत्येक सदन का प्रत्येक सदस्य अपना स्थान ग्रहण करने से पहले  राष्ट्रपति या उसके द्वारा इस निमित्त नियुक्त व्यक्ति के समक्ष तीसरी अनुसूची में इस प्रयोजन के लिए दिए गए प्रारूप के अनुसार शपथ लेगा या प्रतिज्ञान करेगा और उस पर हस्ताक्षर करेगा!'

हमारे संविधान का यह खास अनुच्छेद और तीसरी अनुसूची में दर्ज शपथ का प्रारूप बहुत महत्वपूर्ण और जरुरी संवैधानिक प्रक्रिया को रेखांकित करते हैं!

आमतौर पर शपथग्रहण की यह औपचारिक संवैधानिक प्रक्रिया शांत, संजीदा और गरिमापूर्ण माहौल में पूरी होती रही है! शपथ लेने और रजिस्टर पर हस्ताक्षर के अलावा इस दरम्यान सदन में और कुछ भी नहीं होना चाहिए! लेकिन इस बार नवनिर्वाचित माननीय सदस्यों के शपथग्रहण के दोनों दिन सदन में खूब आवाज़ें, विवादास्पद नारेबाजी और टिप्पणियां हुईं!

हमारे लोकतंत्र के महान् स्वप्नदर्शियों और संविधान-निर्माताओं ने लोकसभा में ऐसी आवाजों, ऐसी नारेबाजियों, ऐसे माहौल की शायद ही कभी कल्पना की होगी! ये शुरुआती दो दिन संसदीय मर्यादा, लोकतांत्रिक-प्रौढ़ता और बौद्धिक-सहिष्णुता के हिसाब से बहुत सुखद और आशाप्रद नहीं रहे!

 35 साल के अपने पत्रकारिता जीवन में मैंने विधानमंडलों (बिहार, पंजाब, हरियाणा) और संसद की कार्यवाही को तकरीबन दो दशक कवर किया! शपथ ग्रहण के दौरान सदन के अंदर ऐसे नारे, ऐसी आवाज़ें और ऐसा दृश्य पहले कभी नहीं देखा(जैसा सोमवार और मंगलवार को टीवी चैनलों के लाइव-प्रसारण में देखा)! इसे क्या माना जाये?

(साभार : श्री उर्मिलेश जी की फ़ेसबुक पोस्ट से।)

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