शनिवार, 7 अप्रैल 2018

दलित आंदोलन



चंद्र भूषण सिंह 
सन्दर्भ-
मैं दलित चेतना और उनके संघर्ष को कोटिशः नमन करता हूँ क्योकि वे ही कौमें जिंदा कही जाती हैं जिनका इतिहास संघर्ष का होता है,जो अन्याय के प्रतिकार हेतु स्वचेतना से उठ खड़े होते हैं।

02 अप्रैल 2018 का दिन दलित चेतना का,संघर्ष का,बलिदान का,त्याग का ऐतिहासिक दिन बन गया है क्योंकि बगैर किसी राजनैतिक संगठन या बड़े नेता के आह्वान के सिर्फ और सिर्फ सोशल मीडिया पर दलित नौजवानों/बुद्धिजीवियों की अपील पर पूरे देश मे दलित समाज का जो स्वस्फूर्त ऐतिहासिक आंदोलन उठ खड़ा हो गया,वह देश के तमाम बड़े आंदोलनों को पीछे छोड़ते हुए एक अद्वितीय और अनूठा आंदोलन हो गया है।
अब तक देश मे जितने बड़े अंदोलन हुए उन सबका नेतृत्व या तो किसी नेम-फेम वाले बड़े व्यक्ति/नेता ने किया या किसी बड़े राजनैतिक/सामाजिक संगठन द्वारा प्रायोजित हुवा जिसका भरपूर प्रचार -प्रसार विभिन्न माध्यमो से या मीडिया द्वारा किया गया लेकिन सुप्रीम कोर्ट द्वारा एससी/एसटी ऐक्ट में किये गए अमेंजमेंट के बाद सोशल मीडिया पर एक न्यूज उछला कि 2 अप्रैल को दलित समाज द्वारा भारत बंद किया जाएगा।इस आह्वान का कर्ता-धर्ता कौन है,यह अपील किसकी है,ये सब कुछ बेमानी हो गया और सोशल मीडिया पर उछले इस अपील की परिणति यह हुई कि 2 अप्रैल को पूरा भारत बिना किसी सक्षम नेतृत्व के बुद्धजीवियों/छात्रों/नैजवानो और प्रबुद्ध जनो के सड़क पर उतर जाने से बंद हो अस्त-ब्यस्त हो गया।
इस आंदोलन का एक पहलू जहाँ यह रहा कि पूरे देश के दलित बुद्धजीवी एकजुट हो करो या मरो के नारे के साथ जय भीम का हुंकार भरते हुए देश भर में सड़कों पर आ गये तो कथित प्रभु वर्ग अपने अधिकारों को बचाने हेतु आंदोलित संविधान को मानते हुए शांतिपूर्ण सत्याग्रह कर रहे वंचित समाज के लोगो पर ईंट-पत्थर-गोली चलाते हुए इस आंदोलन को हिंसक बना दिया जिसमें 14 दलित साथी शहीद हो गए।
यह आंदोलन अपने आप मे बहुत ही महत्वपूर्ण आंदोलन हो गया है क्योंकि अपने संवैधानिक अधिकारों को महफ़ूज बनाये रखने के लिए शहादत देने का ऐसा इतिहास अब तक किसी कौम ने नही बनाई है।यह दलित समाज ही है जो अपने अधिकारों व सम्मान के लिए लड़ना व मरना जानता है।
मैं निःसंकोक कह सकता हूँ कि इस देश मे यदि कोई जगी कौम है तो वह या तो दलित कौम है या प्रभु वर्ग।इस देश का 60 फीसद पिछड़ा बिलकुल मुर्दा है क्योंकि उसे न अपने अधिकार का भान है और न अपने सम्मान की फिक्र,यह तो जैसे है वैसे ही चलता रहे,इस मान्यता में जीने वाली जमात है।
2 अप्रैल को sc/st ऐक्ट को निष्प्रभावी बनाने के विरुद्ध आहूत अंदोलन ने जता दिया है कि दलित अपने अधिकार की हिफाजत हेतु किसी भी सीमा तक जा सकता है जबकि सवर्ण तबका भी मण्डल कमीशन लागू होने के बाद देश भर में रेल-बसों को फूंकते हुए खुद का आत्मदाह कर यह दिखा चुका है कि वह इतनी आसानी से देश पर अपने वर्चस्व को खत्म नही होने देने वाला है।2 अप्रैल के आंदोलन में भी यह सवर्ण तबका हथियार लेकर शांतिपूर्ण आंदोलन कर रहे 14 दलित आंदोलनकारियो की हत्या कर जता दिया है कि इस देश मे आंदोलन करने,बोलने व कुछ भी कर डालने का एकाधिकार उसी का है।


इस देश का पिछड़ा तो ऐसा कुचालक है जो उसी डाल को काटता है जिस पर वह बैठा हुआ है।यह पिछड़ा अपनी दुर्दशा का दोष कभी अम्बेडकर साहब पर तो कभी खुद के भाग्य पर डालता है क्योंकि इसे स्वयं संघर्ष करने में रुचि नही है।यह विशाल किन्तु खण्ड-खण्ड में बंटा पिछड़ा कभी अपने अधिकार,मान-सम्मान के लिए लड़ने में विश्वास रखा ही नही है।संविधान के अनुच्छेद 15(4),16(4) एवं 340 के क्रियान्वयन के लिए यह पिछड़ा वर्ग देश भर में कभी संगठित हो लड़ा ही नही।1977 में अपनी राजनैतिक प्रतिबद्धता के कारण बिहार व यूपी में क्रमशः कर्पूरी ठाकुर जी व रामनरेश यादव जी गालियां खाते हुए इन असंगठित पिछडो को कुछ आरक्षण दिए थे तो 1990 में राजनैतिक दुर्घटनावश वीपी सिंह जी ने मण्डल लागू कर इन सोए हुए पिछडो को 27 प्रतिशत आरक्षण दे दिया था।ये पिछड़े पूर्ण मण्डल लागू करवाने,जातिवार जनगणना करवाने,प्राइवेट सेक्टर सहित हर क्षेत्र में आरक्षण पाने हेतु कभी न लड़े, न सोचें ही।ये पिछड़े सचमुच के पिछड़े हैं लेकिन देश का sc/st निश्चित तौर पर बहादुर वर्ग है जो लड़कर अधिकार लेना जानता है।
2 अप्रैल 2018 के भारत बंद में अभी सुश्री मायावती जी खुलकर नही आईं जबकि रामविलास पासवान जी इस आंदोलन को बेमानी बता डाले तो रामदास अठावले जी लखनऊ आ मायावती जी को भाजपा से गठबंधन करने का दावत दे डाले लेकिन बिना किसी राजनैतिक सहयोग के (बिहार में तेजश्वी यादव जी के सहयोग को छोडकर करके) दलित समाज ने अपनी शहादत देते हुए जो अमिट लकीर खींच डाली है वह आंदोलनों के इतिहास में माइल स्टोन सिद्ध होगा।
मैंने अपने जनपद देवरिया में देखा कि 2 अप्रैल 2018 के आंदोलन में मुझको लेकर कुंल 4-5 लोग ही पिछड़े वर्ग के रहे होंगे जो इस आंदोलन का हिस्सा बने वरना पूरी भीड़ शिक्षित दलित समाज की ही थी।आज देश का दलित समाज बाबा साहब डॉ भीम राव अम्बेडकर जी के "शिक्षित हो,संगठित हो,संघर्ष करो" के मूल मंत्र को आत्मसात कर तरक्की की राह पर अग्रसर है।
2 अप्रैल 2018 को अपने अधिकारों की रक्षा हेतु आंदोलन करते हुए शहीद हुए भीम सैनिकों को नमन करते हुए देश भर के दलित बुद्धजीवियों को साधुवाद कि उन्होंने बिना किसी सक्षम नेतृत्व के संघर्ष की ऐतिहासिक इबारत लिखते हुए यह जता दिया कि वे मरी कौम नही हैं और अन्याय बर्दाश्त करने वाले भी नही हैं।
भीम सैनिकों को एक बार पुनः उनकी शहादत पर नमन और तीब्र संघर्ष पर भीम सलाम!

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"2 अप्रैल 2018 का आंदोलन"

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★"संविधान रक्षक सेनानी" हैं भाजपा सरकार के दमन का मुकाबला करने वाले वंचित समाज के आंदोलनकारी....

★सपा/बसपा को घोषित करना चाहिए कि आंदोलन में मरने वाले आंदोलन कारियों के परिजनों को नौकरी/मुआवजा दिया जाएगा तथा मुकदमो में फँसाये गए लोग पेंशन पाएंगे....

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संविधान,आरक्षण और एससी/एसटी ऐक्ट को लेकर 2 अप्रैल 2018 को हुए ऐतिहासिक आंदोलन में करीब 12 वंचित समाज के आंदोलनकारी जान गवां बैठे हैं जबकि आज भी इस आंदोलन में हिस्सा लेने वाले आंदोलनकारियों का दमन जारी है जिसमे इनके विरुद्ध मुकदमा लिखने,छापा डालने,पिटाई करने व जेल भेजने का क्रम शुरू है।
भारतीय संविधान,आरक्षण एवं अपने अधिकारों की हिफाजत के लिए वंचितों ने हुंकार क्या भरा,देश भर का प्रभु वर्ग इनका मुखालिफ हो गया।क्या सरकार,क्या पुलिस और क्या आम अभिजात्य जन,सबकी भृकुटि इन वंचित तबके के आंदोलनकारियों पर चढ़ी हुई है।
पुलिस आंदोलनकारियों को "चमारिया" कहते हुए थाने में बेल्टों से पीट रही है तो आम अभिजात्य जन सड़को पर "मारो चमारों" को कहते हुए पिटाई कर रहे हैं।सरकार सारे देश मे इन आंदोलनकारियों के दमन पर उतारू है।मुकदमो की झड़ी लगा दी गयी है।लोगो के घरों में छापे पड़ रहे हैं जिस पर भाजपा के ही सांसदों को चिट्ठी लिखनी पड़ रही है लेकिन स्थिति ढाक के तीन पात जैसी है।
आखिर अपने संवैधानिक अधिकारों को बचाये रखने के लिए शांतिपूर्ण सत्याग्रह करना कौन सा गुनाह है?आखिर क्यों इन आंदोलनकारियों पर संविधान द्रोही प्रभु वर्ग के लोगो ने भी गोली चलाया और पुलिस ने भी गोली चलाया?आखिर क्यों इन्हें आंदोलन करने के बाद मुकदमो में फंसाया जा रहा है और छापे डाल करके गिरफ्तारी कर पीटा जा रहा है?क्या कारण है कि इस स्वस्फूर्त आंदोलन से देश की सत्ता भयाक्रांत हो गयी है और दमन पर उतारू है?
देश भर में संविधान बचाने हेतु वंचित समाज के सजग बुद्धिजीवियों ने जिस तरीके से आंदोलन किया है वह उन्हें "संविधान रक्षक सेनानी" का दर्जा देने योग्य है।सपा और बसपा को चाहिए कि इनके नेता श्री अखिलेश यादव जी व सुश्री मायावती जी को साझा प्रेस कांफ्रेंस कर यह घोषित कर देना चाहिए कि देश मे संविधान बचाने हेतु आंदोलन करते हुए जो कोई मरेगा उसे शहीद का दर्जा देते हुए उसके परिजनों को सपा/बसपा की सरकार बनने पर नौकरी व मुआवजा दिया जाएगा तथा उत्पीड़न,मुकदमा,पिटाई व जेल जाने वाले आंदोलनकारियों को "संविधान रक्षक सेनानी" घोषित करते हुए सम्मानजनक पेंशन दिया जाएगा।
सपा/बसपा ने ज्यों ही इन आंदोलनकारियों को "संविधान रक्षक सेनानी" घोषित कर पेंशन व मुआवजा देने की बात किया त्यों ही इन वंचित समाज के क्रांतिकारी साथियो का उत्पीड़न बन्द हो जाएगा और आंदोलन करने वाले साथियो का हौसला हजार गुना बढ़ जाएगा वरना देश फासीवाद की गिरफ्त में चला जायेगा और इसके विरुद्ध कोई लड़ने वाला भी नही मिलेगा।
मेरी पुरजोर अपील है कि श्री अखिलेश यादव जी व सुश्री मायावती जी संविधान की रक्षा हेतु संघर्षरत प्रबुद्ध जनो का उत्पीड़न रोकने हेतु आगे आएं और इन्हें "संविधान रक्षक सेनानी" घोषित कर इनके सम्मान व अधिकार की रक्षा व उत्पीड़न के विरुद्ध प्रतिकार हेतु आवाज बुलंद करें।
जय भीम!जय मण्डल! जय लोहिया!

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