शनिवार, 15 अप्रैल 2017

जब वे एक साथ होंगे !


(बीजेपी की जीत से आहत सपा बसपा एक साथ आने की सोच रही है जबकि वैचारिक रूप से इन दलों का आंतरिक सेतु तोड़ने का जो महँ काम किया है इनके नेताओं ने वह भरना बहुत आसान नहीं है , मीडिआ अपने पुरे सवाब पर है जिसे हम इस तरह देख सकते हैं की इनके बीच जिस तरह के जहर का समावेश इन्होने किया है वह बहुत ही पीड़ा दायक है )

आजकल यह चर्चा बहुत जोरों पर है कि मायावती जी और अखिलेश जी एक साथ आ रहे हैं । वैसे तो इस विचार का स्वागत करने वाले लोग आजकल भाजपा में चले गए हैं । और भाजपा तो उनके सपनों की पार्टी थी ही लेकिन जब तक वे सपा बसपा का विनाश नहीं कर लिए तब तक वे वहीँ जमे रहे । अब सामाजिक सरोकारों को एक सतह पर लाने के लिए जिस तरह से वह उनको मजबूत करने के लिए अखिलेश और मायावती को एक साथ लाने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं ? और जैसा की योगी जी का भी मानना है कि वह उनके प्रभाव के कारण ही एक साथ आ रहे हैं?
अब देखना यह है कि एक साथ आकर यह क्या जनता को बताते हैं ? क्योंकि इन्होंने अपने कार्यकाल में उसी जनता का सबसे ज्यादा नुकसान किया है जिसकी वजह से यह नेता बने थे और उसी जनता ने इन्हें नकार दिया है! फिर भी यह देखना है कि इनके पास सामाजिक न्याय का कोई मुद्दा बचा है क्या ? क्यों  कि यह सवर्णों के लिए बेहद बेचैन रहे है ? और अगर यह है तो वह क्या है या केवल सत्ता के लिए साझा हो रहा है या कोई मुद्दे भी यहां हैं। यदि ऐसा है तो यह अपने मिशन में कितने सफल हो पाएंगे उस पर बहुत कुछ अभी से नहीं कहा जा सकता लेकिन इतना जरूर कहा जा सकता है कि उनका यह समझौता समाज के लिए ना होकर क्या इनके अपने निजी स्वार्थ के लिए ज्यादा नजर आ रहा है ?
क्योंकि इन्होंने सत्ता में रहते हुए इस तरह के समझौतों पर कभी विचार ही नहीं किया बल्कि उल्टे एक दूसरे पर प्रहार ही किया है । यह तो भला हो जनता का कि वह इनके इस मंसूबे के साथ एक साथ आने पर इनके लिए एक साथ खड़ी हो जाए और इनसे पूछें कि क्या आपको सामाजिक न्याय की कोई समझ है और अगर समझ है तो आरक्षण पर आप कहां कहां खड़े हुए हैं !
यह निश्चित जानिए कि यदि आरक्षण के मामले पर और सामाजिक न्याय के तमाम सवालों पर आप का ज्ञान नहीं है। तो जनता आपके झांसे में अब दुबारा आने वाली नहीं है इसलिए आपका यह मेल मिलाप केवल और केवल भाजपा के कल्पनातीत बहुमत का भय ही है जो इनको एक साथ खड़ा कर रहा है ।
खुदा न खाश्ता यह एक साथ आकर अगर जीत भी गए तो इनके सलाहकार वही 15 फीसदी लोग होंगे और वह सामाजिक न्याय की सारी शक्तियों का बड़ा नुकसान करायेंगे।

डॉ.लाल रत्नाकर

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