शनिवार, 15 अप्रैल 2017

बहुजन समाज के लिए खोटा सिक्का साबित हुईं बहनजी

लखनऊ। 

बसपा संस्थापक मान्यवर कांशीराम की शिष्या मायावती बहुजन समाज के लिए खोटा सिक्का साबित हुई हैं। बहन जी को जहां बगैर संघर्ष के 2007 में यूपी की सत्ता मिली वहीं धन की तृष्णा से वशीभूत बसपा को बहुजन से सर्वजन में बदल दिया। जिसका खामियाजा यह हुआ कि जैसे-जैसे मायावती का खजाना भरता गया वैसे-वैसे देश और प्रदेश में बसपा का जनाधार तेजी से गिरता गया। साथ ही बहजनी की दलित समाज से दूरी बढ़ती गई। भ्रष्टï व दलाल लोगों से घिरती गई। यह बातें बसपा के बागी नेता और पूर्व कैबिनेट वित्त मंत्री के.के. गौतम ने निष्पक्ष दिव्य संदेश के विशेष संवाददाता राजेन्द्र के.गौतम से एक विशेष साक्षात्कार में कही।
















प्रश्न:- आपका बाल, शैक्षिक, सामाजिक और राजनीतिक जीवन सफर कैसा था?
उत्तर:- मेरा जन्म 4 मई 1958 को इलाहाबाद में हुआ था, 97 वर्षीय पिता बी.दास एक रिटायर्ड शिक्षा अधिकारी हैं, माता श्रीमती दुलारी गृहणी थीं। मेरी प्राथमिक शिक्षा सरकारी स्कूल से शुरू हुई थी। हाईस्कूल, इंटरमीडिएट, एलएलबी इलाहाबाद से किया। इसके बाद कुछ समय के लिए वकालत की। समाज सुधारक लल्लई यादव और चौधरी चुन्नी लाल (आरपीआई) की विचारधारा से प्रभावित था।  कांशीराम साहब द्वारा शुरू किए गए साप्ताहिक समाचार पत्र बहुजन संगठन से काफी प्रेरणा मिलती थी। इसी प्रेरणा के चलते वर्ष 1980 में प्रतापगढ़ के एक गांव में बाबा साहब की जयंती मनाई थी। जिसको लेकर दबंगों ने मारा-पीटा अपमानित किया।
प्रश्न:- बसपा में किन-किन पदों पर अपने दायित्व का जिम्मेदारी से निर्वाहन किया?
उत्तर:- शुरूआती दौर में 1990 में बसपा संस्थापक मान्यवर कांशीराम जी ने इलाहाबाद नगर उपाध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपी थी। इसके बाद जिला प्रभारी, बहुजन सुरक्षा दल जिला प्रभारी, मुख्य जोनल कोआर्डिनेटर, इलाहाबाद कमिशनरी, लखनऊ कमिश्नरी, आजमगढ़ कमिश्नरी, बनारस कमिश्नरी, बस्ती कमिश्नरी, कानपुर कमिश्नरी, झांसी एवं चित्रकूट आदि कमिश्नरी, और मुख्य कोआर्डिनेटर हुआ करता था। 12 साल एमएलसी पार्टी का दल का नेता विधान परिषद, यूपी सरकार में वित्त मंत्री, कैबिनेट कृषि, शिक्षा मंत्री, कार्यवाहक सभापति विधान परिषद उत्तर प्रदेश एवं तमिलनाडू, हिमाचल और बिहार प्रदेश का कोआर्डिनेटर बनाया गया था।
प्रश्न:- बसपा से मोहभंग होने का कारण?
उत्तर:-जब तक मान्यवर कांशीराम जी जीवित रहे, तब तक बसपा में अम्बेडकरी मिशन रहा। 2007 से बसपा की कमान बहनजी के हाथों में आने के बाद से मिशन और नीयत में तेजी से बदलाव आया। मान्यवर कांशीराम ने बहुजन समाज की विभिन्न जातियों के जितने भी अम्बेडकर मिशन के नेता तैयार किए थे, उनको निकाल दिया। जिससे मिशन कमजोर हुआ। बसपा सर्वजन से बहुजन में तब्दील हुई। बहुजनों के बजाए बसपा में चमचों और चापलूसों तथा कमाऊ पूतों राज हो गया। हद तक हो गई जब 15 मार्च 2017 को मान्यवर कांशीराम की जयंती के अवसर पर लखनऊ में मात्र 70-80 कार्यकर्ता इक्_ïा हुए। जिससे मन काफी व्यथित हुआ और बसपा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया।
प्रश्न:- क्या आप मानते हैं कि बसपा सुप्रीमो मायावती दलित हितैषी हैं?
उत्तर:-शुरूआती दौर में बहनजी मन से दलित हितैषी जरूर थी। जैसे-जैसे ही सत्ता का स्वाद चखा, वैसे-वैसे दलित हितों से दूर होती गई। 36 साल से बसपा की सेवा में लगा रहा। मुझे प्रतीत होता है कि दलित हितों के प्रतिकूल जितने भी फैसले हुए हैं वह सब बहनजी  के राज में हुए हैं। आपको याद होगा कि 2007 में दलित एक्ट को नाखून विहीन किया गया। दलित समाज के प्रमोशन में आरक्षण की कोर्ट में बेहतर ढंग से पैरवी नहीं की गई। जिसके कारण लाखों दलित कर्मचारियों और अधिकारियों को डिमोट होना पड़ा। यूपी में होने वाले किसी भी दलित उत्पीडऩ के मामले पर न तो कभी निंदा व्यक्त की और न ही विरोध किया। जिसके कारण दलित समाज का आज भी उत्पीडऩ हो रहा है। बहनजी अपने राजनीतिक भविष्य को लेकर इतना घबराती है कि पार्टी और दलित समाज से कोई दूसरे लीडर को पनपने नहीं देती हैं। यही वजह है कि बसपा में मात्र एक ही नेता हैं, बाकी गुलामों की तरह काम कर रहे हैं। जिनको मुंह खोलने की इजाजत नहीं है।
प्रश्न:- क्या कारण बसपा दलित उत्पीडऩ के मामलों को मुखर तौर से नहीं उठाती है और सड़कों पर संघर्ष के लिए क्यों घबराती?
उत्तर:-जिस पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को महलों और राजसी व विलासतापूर्ण जीवन जीने की आदी हो गई हों, जिसने संघर्ष को तिलांजलि दे दी हो, दलित महापुरूषों के संघर्ष के आह्वïान से किनारा कर लिया हो। उससे आप संघर्ष की उम्मीद नहीं कर सकते हैं। 2007 के बाद से बसपा पूरी तरह से सड़क के संघर्ष से दूर हो चुकी है। जब बसपा सुप्रीमो मायावती पर कोई आरोप लगते हैं, तब मजबूरन संघर्ष के लिए पार्टी को मैदान में उतरना पड़ता है। यही वजह है कि बसपा न तो दलित उत्पीडऩ के मामलों को सड़क से लेकर सदन तक उठाती है और न ही धरना-प्रदर्शन भी नहीं करती है।
प्रश्न:- बसपा सुप्रीामो मायावती का जनता और बसपा पदाधिकारियों से दूरी बनाए रखने के क्या कारण हैं?
उत्तर:-बसपा के आम कार्यकर्ता और पदाधिकारी से बहनजी न मिलने की पीछे एक मात्र कारण है कि बहनजी को विश्वास है कि दलित समाज उनका ऐसा वोट बैंक है, जो उनको छोड़कर नहीं जाएगा। यही वजह है कि बसपा के पदाधिकारी, विधायक, सांसद महीनों नहीं मिल पाते हैं। अब पार्टी में चंदा लेकर बसपा सुप्रीमो मायावती से मिलवाने का चलन बढ़ गया है। अगर आपको आसानी से मिलना है तो आप पार्टी के फंड में चंदा जमा कर दें तो आसानी से मिल सकते हैं। जनता से इसलिए नहीं मिलती हैं कि न तो अपना और पार्टी का कोई विजन आम जनमानस के सामने आता है।
प्रश्न:- आखिर बसपा में मिशनरी और ईमानदार कार्यकर्ता के बजाए धन्ना सेठों को टिकट क्यों दिए जाते हैं?
उत्तर:-यह आम चर्चा है कि बसपा के टिकट बिकते हैं। इस चर्चा को कभी भी बसपा सुप्रीमो मायावती ने अस्वीकार नहीं किया। बसपा में टिकट बिकने की बीमारी 2007 से शुरू हो गई थी। 2017 तक धन संग्रह की बीमारी ने कैंसर का रूप ले लिया। बहनजी द्वारा किए जा रहे धन संग्रह का लाभ बहुजन समाज को न मिलकर उनके भाईयों व उनके परिजनों को मिल रहा है। इसी वजह से बसपा 2017 के आम चुनाव में बुरी तरह से हारी। पैसे के चक्कर में जिताऊ और टिकाऊ व मिशनरी कार्यकर्ताओं की उपेक्षा कर सुरक्षित सीटों पर खूब वसूली की गई है। इन तथ्यों को बसपा सुप्रीमो मायावती के सामने वर्ष 2012 और 2017 के विधान सभा चुनावों से पहले वास्तविक स्थिति को बताया था। जिसका बसपा को इन चुनावों में खामियाजा भी भुगतना पड़ा था। लेकिन इस ईमानदारी की सजा तमिलनाडू और बिहार राज्य में भेजकर मिली।
प्रश्न:- राजनीतिक तौर पर बसपा के कमजोर होने के क्या कारण हैं?
उत्तर:- मान्यवर कांशीराज के परिनिर्वाण के बाद से बीएसपी में जब से बहन मायावती ने पार्टी संभाली, तबसे बहन जी अपना (एजेंडा) लागू करने लगी। कांशीराम साहेब के बताए गये रास्ते से हटकर जनशक्ति को छोड़ते हुए धनशक्ति को अपनाने लगी। जिसके फलस्वरूप बसपा देश के 12 राज्यों में विधायक थे। आज सब खत्म हो गया। चार राज्यों में एमपी हुआ करते थे। सब समाप्त हो गया। कांशीराम ने बड़े संघर्ष और त्याग के कारण बसपा को राष्टï्रीय पार्टी का दर्जा दिलवाया था, जो बहजनी की गलत नीतियों के कारण अब समाप्ति की ओर है।
प्रश्न:- बसपा की करारी हार के लिए आप किसे जिम्मेदार मानते हैं?
उत्तर:-बसपा की इस हार के लिए पूरी तरह से बहनजी जिम्मेदार हैं। ईवीएम का विरोध मात्र दलित समाज और पैसे लेकर टिकट पाने वाले प्रत्याशियों का ध्यान बांटने के लिए किया जा रहा है। जबकि वास्तविक स्थिति यह है कि बसपा सुप्रीमो मायावती की शह पर कुछ चापलूस पदाधिकारियों ने टिकट बिकवाने में अहम भूमिका निभाई। जिनका खुलासा बाबा साहब डा. भीमराव अम्बेडकर जयंती की पूर्व संध्या पर चारबाग स्थिति रवीन्द्रालय में आयोजित एक राज्य स्तरीय कार्यकर्ता सम्मेलन में किया जाएगा।
प्रश्न:- भविष्य की क्या योजना है?
उत्तर:-बाबा साहब डा. भीमराव अम्बेडकर और मान्यवर कांशीराम जी के मिशन को आगे बढ़ाने का संकल्प लिया है। मिशन सुरक्षा परिषद का गठन किया गया है। अभी इसके तहत दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यक समाज को जोड़ कर व रायशुमारी कर बसपा का विकल्प बनने के लिए एक राजनीतिक दल का गठन करने की तैयारी है।


-पूर्व कैबिनेट वित्त मंत्री के.के. गौतम

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