बुधवार, 17 फ़रवरी 2016

क्या यही राष्ट्रवाद है!

रोहित वेमुला 
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भारतीय शिक्षा व्यवस्था का आधुनिक उत्पीड़न का चेहरा।  ब्राह्मिणवाद का क्रूर उत्पात और राजनैतिक समर्थन के साथ भारतीय न्याय व्यवस्था के मुखौटे का जितना भयावह रूप निकल कर सामने आया है इसपर बहस हो इससे पहले ही नया उत्पात जिसे राष्ट्रवाद का नाम देकर देश के प्रख्यात विश्वविद्यालय जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय नई दिल्ली से जिस प्रायोजित उत्पात को अंजाम दिया गया है, उसके फलितार्थ आने वाले दिनों में पुरे देश के दलितों, पिछड़ों  व् अल्पसंख्यकों को सहने होंगे !
सबसे आश्चर्य की बात तो यह है उन दलों के किसी (दल) संगठन को इसकी चिंता नहीं है, जो इन वर्गों के वोट के बलपर राजनीती करते हैं ? जिससे यह आंदोलन चलाना केवल भारतीय दलित पिछड़े युवाओं  के लिए गहरे संकट में आता जा रहा है, किसी दल का राष्ट्रीय प्रवक्ता जब ये कहता हो की ऐसी हत्याए तो आम बात हैं, इसपर राजनीती की रोटी सेंका जाना ठीक नहीं है, ऐसा कहना कितना शर्मसार करता है सामाजिक गैर बराबरी की सोच और उस आंदोलन को जिसके बलपर पूरा परिवार सत्ता के भिटहुर पर बैठा है !
सामजिक न्याय के सवाल पर ब्राह्मिणवादी सत्ता हमेशा अलग अलग हमला करती है, दलित और पिछड़ों अल्पसंख़्यको को बाँट कर वह अपना निहितार्थ पूरा करती है जबकि शीर्ष पर हर तरह से किसी ब्राह्मिन को ही रखती है। 
कन्हैया कुमार कुछ इसी तरह का उनका प्रयोग है !       



क्या यही राष्ट्रवाद है!
-डॉ. लाल रत्नाकर 
यह शर्मसार करता राष्ट्रवाद ?
क्या यही राष्ट्रवाद है!
यह किसका राष्ट्रवाद है ?
सदियों से लूट रहे लूटेरों का राष्ट्रवाद ?
जिसे किसी जाति ने हथिया लिया हो!
धर्म या गिरोह के नाम पर !
और उसका मनमाना प्रयोग कर रहा हो,
जातियों के दमन के लिये !
उन जातियों के होनहारों को आत्महत्या,
तक मजबूर करने का राष्ट्रवाद है!
यह शर्मसार करता राष्ट्रवाद?
क्या यही राष्ट्रवाद है!
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भाजपा के राष्ट्रवाद का विरोध हो रहा न की देश का। क्योंकि संघ और भाजपा के राष्ट्रवाद में दलित नहीं है और न ही पिछड़ा को कोई जगह किसान मजदूर की हालत तो विचित्र है केवल बामन और बनियों की जगह है वहां उनके अनुरूप नीतिया बनाना ही इनका राष्ट्रवाद है, जिसका सभी दलित,पिछड़े, अल्पसंख्यक और किसान मज़दूर उनके अमानवीय नीतियों का विरोध करते हैं  जिसको ये राष्ट्रवाद का विरोध कहते हैं।   

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