रविवार, 31 जनवरी 2016

रोहित वेमुला की आत्म ह्त्या ने बहुतेरे सवाल खड़े कर दिए हैं ?

रोहित वेमुला की आत्म ह्त्या ने बहुतेरे सवाल खड़े कर दिए हैं ?
इनका जवाब ढूढ़ा जाना है जबकि पूरी केंद्र की सरकार इसे दबाने पर आमादा है, अब देखना है की इन ब्राह्मिणवादी दलित और पिछड़े राजनेता कितने डरपोक और कथित सवर्ण और महिला नेत्रियां कितनी कुटिल हैं।  जबकि न्याय तंत्र कुछ परिवारों, जातियों की रक्षा के लिए ही सबकुछ कर रहा है।
हम यहाँ पर अनेकों लोगों के  विचार संग्रहित करने के प्रयास कर रहे हैं..

रोहित वेमुला दलित नहीं था: सुषमा स्वराज

नई दिल्लीFirst Published:31-01-2016 12:55:27 AMLast Updated:31-01-2016 12:56:11 AM
रोहित वेमुला दलित नहीं था: सुषमा स्वराज
विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने शनिवार को कहा कि शोध छात्र रोहित वेमुला दलित नहीं था। न्यूज एजेंसी एएनआई के मुताबिक, स्वराज ने कहा कि मेरी पूरी जानकारी के अनुसार वो बच्चा दलित नहीं है। तथ्य यह है कि ये पूरी की पूरी बातचीत जो की गई या आरोप लगाए, वो आरोप पूरी तरह निराधार हैं।
खुदकुशी नहीं कर सकते थे वेमुला
भाजपा महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने रोहित वेमुला को साहसी नौजवान बताया। उन्होंने कहा कि हैदराबाद विश्वविद्यालय का यह शोधार्थी छात्रावास से निष्कासन की छोटी-सी घटना के कारण खुदकुशी नहीं कर सकते थे। विजयवर्गीय ने कहा कि वेमुला की आत्महत्या एक दुखद घटना है। वह एक साहसी नौजवान थे और प्रवाह के विपरीत तैरने का साहस रखते थे। उनकी आत्महत्या के मामले की जांच जारी है। लेकिन मैं नहीं मान सकता कि वह छात्रावास से अपने निष्कासन की छोटी-सी घटना से परेशान होकर जान दे सकते थे।

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एक तरफ गैर-दलित कांग्रेस के नेता श्री राहुल गांधी जी और अन्य नेता ‘राहुल वेमुला की मां’ से मिलकर दुःख व्यक्त कर सकते हैं। लेकिन वहीं, दूसरी ओर ‘दलित’ भाजपा अनुसूचित जाति मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री दुष्यंत कुमार गौतम मिलना तो दूर उल्टे वे ‘राहुल वेमुला’ के साथ हुए अन्याय के प्रति पूरे देश और विदेश में होने वाले विरोध प्रदर्शन के विरोध मंे ‘धिक्कार रैली’ निकाल रहे हैं। ऐसा भाजपा का ऐसा ‘दलित प्रेम’ पहली बार दिखाई दिया। पूरे देश में दलित उत्पीड़न, बलात्कार, हत्या, अन्याय और शोषण की घटनाओं की एक लम्बी सूची तैयार हो चुकी है, उसके खिलाफ, उसे रोकने के लिए कारगर कदम उठाने चाहिए था, मोदी जी की सरकार को लेकिन वे तो दुनिया भर के ‘विजनेस मैनों’ को आंमत्रित करने में लगे हैं। विकास सिर्फ पूंजीपतियों का ही हो रहा है, दलितों की तो किसी को परवाह की कहां हैं? दलित अपने अधिकारों की मांग करते-करते आत्महत्या कर लेते हैं, उस पर भी कोई आंसू बहा भी न सके..... विरोध भी न कर सके, ऐसा तो भारतीय संविधान में कहीं उल्लेख नहीं मिलता। बाबा साहेब की अपने आपको सर्वाधिक हितैषी सिद्ध करने वाले ही ‘धिक्कार रैली’ निकालेंगेे तो इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि वे दलितों का भविष्य कितना सुरक्षित होने वाला है?
- के पी मौर्य, अंजाम
  

मित्रों !


हमें बाबा साहब के संबिधान के आड़ में जान गवाते हुए कितने वर्ष बीत गए इस संबिधान की रचना के बाद से कितने ब्राह्मिणों ने आत्म ह्त्या की है, ब्राह्मिन आज भी इस संबिधान को नहीं मानता और अपने संबिधान "मनुस्मृति" के अनुसार आचरण करता है, जिसकी वजह से आज भी उसके दिमाग से ये नहीं निकल रहा है की वह सामान्य जन नहीं विशिष्ट जन है और अपने उस पाखण्ड के चलते हज़ारों देवी देवताओं के सहारे पुरे देश को गर्त में ले जा रहा है !
हमें उसके खिलाफ एक जुट होने का वक़्त आ गया है समस्त पिछड़े,दलित और अल्पसंख्यकों को एक होना है तभी देश बचेगा और हम बचेंगे ? हमारे ब्राह्मिणवादी नेताओं के खिलाफ भी नया नेतृत्व पैदा कर राष्ट्रीय आंदोलन खड़ा करना है।

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