शुक्रवार, 4 अप्रैल 2014

इनको कैसे समझाएं ?

इनको कैसे समझाएं ?

बात यहीं ख़खतम नहीं हो रही है इनकी दूरियां बढ़ें या घटें वो तो एक बात है, आने वाली पीढि़यां इनके इन दुष्कर्मों से ज्यादा खतरनाक होती जा रही हैं, उन्हें तो आर एस एस के खतरनाक ‘हिंदुत्व’ कि चाट/चास लगी है. उमा भारतियां, कल्याण और मोदी इनके उदाहरण हैं ये क्या आपके उस समीकरण से अलग हैं. मोदी का तांडव क्या दलित की रासलीला है, नहीं मदारी के इशारे पर ‘नाचने’ का ‘राजा का खेल’ देखते चलिए जिधर इशारा है वहाँ से कुछ नहीं बदलना है, वहाँ तो संतों कि जमात जमकर बैठी है, कोई सर्वजन सुखाय और कोई सवर्ण सुखाय में लगा है, राम और लखन (दलितों के संतों) कि संगत/पंगत में चले गए हैं. कैसा आंदोलन और किसकी चिंता। सोचिये और डरिए जाटव साहब की डांट झेलिये वो अपने पद और कद से उतरने को तैयार नहीं है.और ये पूजा पाठ से नहीं उबरेंगी । पिछड़े अब अगड़े हो गए हैं, कांग्रेस जाटों को पिछड़ा बना दी है, कुर्मी कोयरी नाउ लोहार कोहार  कुम्हार गुजर मलल पाल  मल्लाह को मोदी रास आ रहे हैं। 

सामाजिक बदलाव का सपरिवार लोक सभा में पहुंचना ही रह गया हैए क्या अब वो जगह केवल आरामगाह होकर रह गयी है । धन्य है हमारे राजनेता जिनकी राय सुमारी पर यादव जी इटली मज़बूत करने में लगे हैं और अन्य पिछड़ों के मोदी को रोकने में लगे हैं. देखते हैं क्या क्या होता है !
समय न किसी को माफ़ किया है और न ही करेगा यदि ऐसा न होता तो मुग़ल और अंग्रेज कि औलादें ही इस मुल्क पर राज कर रही होतीं, लालू मुलायम और मायावती मोदी को यह मौक़ा ही न मिलता। मगर अफ़सोस यही होता है कि अवं ने इन्हे द्विजों से राज्य छीनकर इन्हे दिया और ये थाल में उन्हें ही परोस रहे है। 

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