रविवार, 8 दिसंबर 2013

दूसरों (पिछड़ों दलितों और अल्पसंख्यकों के अलावा) के इशारों पर ये थिरकते रहे तो !


बदलाव-2014

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विकल्प हीनता के कारण सपा और बसपा के समर्थक भी उससे किनारा कर लेंगें यदि ये दूसरों (पिछड़ों दलितों और अल्पसंख्यकों के अलावा) के इशारों पर ये थिरकते रहे तो !
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रेखाचित्र ; डॉ लाल रत्नाकर 

सभी दलों से दलित पिछड़े खींचे चले आयेंगे जो नहीं आये तो जनता उन्हें धकेल कर किनारे कर देगी .
बदलाव के प्रासेस में स्वाभाविक है मेरी बात नेताओं को भी ठीक न लगे पर है ये जरूरी, इसे आम आदमी से लेकर सारे बुद्धिजीवी पसंद करेंगे. क्या दिक्कत है ये नेता सत्ता क्यों नहीं चाहते. क्यों ये सत्ता में बैठे चोरों और अपराधियों के शिकंजे में ये जकडे रहना ही पसंद करते हैं, इस मकड जाल को तोड़कर
आओ गले लग जाओ 'राजनीती में कोई अछूत और दुश्मन नहीं होता' तो आप भी अपना हठ छोडो और "गाँठ" जोड़ो, बनाओ गठबंधन और पुरे देश में अपनी सत्ता फैलाओ, पुरे देश के बुद्धिजीवी आपका इंतज़ार कर रहे हैं पुरे देश की अवाम आपको दिल्ली का ताज -2014 में सौपना चाहती है.
कब तक हम महापुरुषों का नाम लेकर भाग्य की माला जपते रहेंगे उन्होंने उस समय के समाज को चुनौती दी थी तभी वो आगे बढे, अब की तरह नहीं की बगैर संघर्ष के नहीं मिलने वाला कुछ। कांशीराम ने इस सदी में ही अपने संघर्षों से सत्ता प्राप्त करने का मंत्र दिया, पर मायावती को गलत फहमी हो गयी की उन्हें यह सत्ता 'ब्राह्मणों ने दी' यही गलती 'नेताजी को है की उन्हें सत्ता सवर्णों ने दी है। 
सामाजिक बदलाव के इस स्वरुप से ही असली बदलाव होगा, किसी को देश से निकालने की जरूरत नहीं है सबको 'इमानदारी और जिम्मेदारी से काम करने की व्यवस्था दलित और पिछड़े ही दे सकते है.' सदियों से शोषक जातियां अपने समुदाय के हित के लिए 'राष्ट्र' हित को नकारकर समुदाय हित के चलते 'बहुसंख्य' आबादी को तमाम सुबिधाओं से बंचित रखती हैं।
एकतरफ देश में बेरोजगारी आसमान छू रही है दूसरी तरफ ये अपनी चौधराहट में बिदेशी कंपनियों को खुली छुट देकर देश को कंगाल और रोजगार बिहीन बनाकर 'मंनरेगा' और न जाने कितने तरह के 'भिक्षा अभियान' को बढ़ावा रहे हैं। 
यदि इनके पास योजना नहीं है तो इन्हें राज करने का कोई अधिकार ही नहीं है, ये केवल पूंजीपतियों के लिए योजना तैयार करते हैं और तमाम आवादी को मजदूर बनाकर रखते हैं।
अतः अब योजना ऐसी बनानी चाहिए जिसमें जनोपयोगी रोजगार को बढ़ावा मिले असमान पूंजी की भण्डारण व्यवस्था पर रोक लगे, प्रतिस्पर्धा का साफ़ सुथरा मानक लागू हो .
आइये इन्हें लागू कराने के लिए एकजूट हों 
और नेत्रित्व को तैयार करें .
अन्यथा पिछड़ों दलितों और अल्पसंखयकों का, 
नहीं तो केजरीवाल जैसे लोग आयेंगे और अवाम को भरमाएंगे, उदितराज, योगेन्द्र यादव जैसे चिंतकों को क्या आपको जरूरत नहीं है, यदि ऐसा है तो कांग्रेस कि मातम पुर्शी में लगे रहो और "नरेंद्र मोदी" गरजते गरियाते आयेंगे और ये भाजपा वाले सदियों सदियों की सामजिक परिवर्तन कि लड़ाई को अपने लिए इस्तेमाल करेंगे।
-डॉ लाल रत्नाकर 

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