सोमवार, 4 नवंबर 2013

कुचक्र रचती है कांग्रेस !

कांग्रेस पिछड़ों के हिस्से को यदि देश की जागरूक जातियों में 'वोट' के लिए बांटना शुरू किया वोट तो उसको मिलेंगे नहीं और पुरे देश में ये सन्देश जाएगा की ये पिछड़ों की विरोधी है . जो वास्तव में है भी इसके अंदर बैठे कांग्रेसी इस की नियति को निति को बजे समाजवादी रखने के जातिवादी और 'द्विजवादी' बनाकर सत्यानाश पर आमादा है, वास्तव में बीजेपी इनकी बी टीम है ये उसे जिताने की तैयारी कर रहे हैं, इन्होने राहुल को मुस्लिम युवाओं के खिलाफ बोलने की राय दी जिससे 'जाट' खुश हों, पर ओ उलटा पड़ गया, अब जाटों को आरक्षण की बात कर रहे हैं, न इन्हें आचार संहिता का डर है और न क़ानून का.

यदि ये अपने कुचक्र से बाज़ नहीं आये तो इन्हें 'बंगाल की खाड़ी' में जनता डालेगी ! 

जाटों पर चुनावी दांव लगाने को सरकार तैयार

congress political bet on jat community

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वित्त मंत्री पी चिदंबरम की अध्यक्षता वाला जीओएम ओबीसी श्रेणी में जाटों का कोटा तय करने की सिफारिश करने पर विचार कर रहा है। दरअसल सरकार अपने इस सियासी दांव से पश्चिमी उत्तर प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा और राजस्थान में भाजपा को चित करना चाहती है।
उल्लेखनीय है कि इन राज्यों में इस बिरादरी की अच्छी खासी संख्या चुनाव नतीजे तय करने में निर्णायक भूमिका अदा करती रही है। इसके अलावा मध्य प्रदेश के कुछ हिस्सों में भी इस बिरादरी की संख्या अच्छी खासी है।
जीओएम में शामिल एक मंत्री के अनुसार फिलहाल आरक्षण की मांग पर सभी का रुख सकारात्मक है। जीओएम ने अब तक आरक्षण के पक्ष में विभिन्न जाट संगठनों और राज्य सरकारों के दावों का अध्ययन करना शुरू कर दिया है। अब इस बारे में जल्द ही निर्णय ले लिया जाएगा।
उक्त मंत्री का कहना था कि ज्यादा संभावना जीओएम द्वारा जाटों को ओबीसी श्रेणी में आरक्षण का कोटा तय करने की सिफारिश की जाएगी।
उल्लेखनीय है कि बेहद विपरीत राजनीतिक परिस्थितियों में घिरे हरियाणा के मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा और रालोद अध्यक्ष चौधरी अजित सिंह ने कई बार प्रधानमंत्री के साथ-साथ कांग्रेस अध्यक्ष से मुलाकात कर इस संबंध में जल्द निर्णय का अनुरोध किया था।
हालांकि एनसीबीसी के सूत्रों का कहना है कि उसकी पहली सिफारिश, जिसमें जाट बिरादरी को आरक्षण देने के लायक नहीं माना गया था, के आधार पर अदालत सरकार के फैसले को फिर से पलट सकती है। वैसे भी वर्ष 2011 में भारी दबाव के बाद सरकार ने एनसीबीसी को अपने फैसले की समीक्षा का अधिकार दिया।
इसके बाद एनसीबीसी अलग से जाटों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति पर आईसीएसएसआर से अध्ययन कराया है। हालांकि आईसीएसएसआर ने फिलहाल अपनी रिपोर्ट नहीं सौंपी है।

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