शुक्रवार, 7 जनवरी 2011

जिस देश में..................................................?

डॉ.लाल रत्नाकर
(जिस देश में यह खबर छपती हो, उस देश का विकास और उसका दायित्व संभालने वालों पर लानत है)
दैनिक जागरण से साभार-

नसीब नहीं हुआ 3 फिट का आवास

Jan 08, 12:00 am
जौनपुर : दर्द को भी अब दर्द होने लगा, अब घाव तो और भी होने लगा.. दर्द के मारे हम न रोये कभी, दर्द खुद ही हमें छू कर रोने लगा.. ऐसा हाल है नगर में स्थित शहाबुद्दीनपुर मोहल्ले के दलित बस्ती में रहने वाले सैकड़ों लोगों का। रोटी, कपड़ा और मकान तो आजादी के 63 साल बाद भी यहां के गरीब लोगों के लिए सपना हो गया है। गुहार लगाते-लगाते इनकी जबान थक गयी और विकास की एक किरण देखने के लिए सभी की आंखें पथरा गयी लेकिन जनप्रतिनिधियों के पिटारे में से निकलने वाले आश्वासन से ही इन्हें काम चलाना पड़ा। शहर में रहने के बाद भी यदि कोई यहां पहुंच जाए तो उसे यह इलाका किसी आदिवासी कबीले का ही लगेगा।
भण्डारी रेलवे स्टेशन के ठीक पीछे रहने वाले दलित बस्ती में करीब 60 घरों में 300 से अधिक लोग आज भी गुलामों जैसी जिंदगी बसर कर रहे है। जिसमें से तो दर्जन भर से अधिक लोगों के घर 3 फिट की ऊंचाई में मिट्टी और पालिथिन के मिश्रण से बनाये गये है। जिसे देखते ही हर किसी की आंख आश्चर्य से फट जाएगी कि ऐसे घरों में जहां कोई सही से खड़ा नहीं हो सकता उसे सिर्फ रात में सोने के लिए गरीब लोग इस्तेमाल करते है। कुल मिलाकर इसे अस्थायी आवास कहा जा सकता है जो बरसात के दिनों में पानी की तरह बह जाता है। सड़क, पेयजल, गरीबी रेखा का राशन कार्ड, वृद्धा व विधवा पेंशन तथा शिक्षा की सुविधा से यहां के लोगों का दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं है। किसी भी छोटी-मोटी सरकारी योजना का लाभ भी आज तक यहां के लोगों को नहीं मिल सका और शासन-प्रशासन के विकास के सारे दावों की पोल यहां आते ही खुल जाती है।
जागरण प्रतिनिधि जब यहां के लोगों की समस्याओं से रूबरू होने पहुंचा तो सभी को लगा कि कोई तो है जो हमारी समस्या सुनने आ गया और बच्चों से लेकर बूढ़ों तक की भीड़ जमा हो गयी। जिसमें हेमू सोनकर, मिठाई, मुन्ना, सुक्खूराम, जप्सू, रामआसरे, राजेश, कैलाश, छोटईलाल व बिहारी ने बताया कि यहां के लोगों का मुख्य व्यवसाय ठेले पर सब्जी व फल बेचना है और इसी से वह किसी तरह अपने परिवार का पेट पालते है। कभी-कभी तो ठंड के दिनों में हालत यह हो जाती है कि कुछ घरों में चूल्हा तक नहीं जलता तो ऐसे में बच्चों को पानी पिलाने के बाद मां कहानियां सुनाकर सुला देती है। बच्चों को शिक्षा बाद में दी जाती है लेकिन पेट पालने के गुर पहले सिखाये जाते है। आजादी तो देश में 63 साल पहले ही आ गयी थी लेकिन इन्हें देखकर लगता है कि गुलामों वाली जिंदगी क्या होती होगी।
शाम होते ही यहां की गलियों में अंधेरा छा जाता है क्योंकि खंभे तो है नहीं और ऐसे में स्ट्रीट लाइट की बात करना ही बेमानी होगी। ढिबरी की रोशनी से ही यहां शाम का आगाज होता है और उसी के सहारे सारे काम होते है। इस बस्ती से निकलने वाला पानी सालों से एक बड़े गडढे में जमा होता है और गंदगी इतनी कि संक्रामक रोग हमेशा यहां पैर पसारे रहता है। नगर में आने के बाद भी इस इलाके के विकास के बारे में नगर पालिका प्रशासन ने आज तक नहीं सोचा। बस्ती की ही धिराजी देवी व गिन्नी देवी ने बताया कि पेंशन के लिए उन्हें सरकारी कार्यालयों के चक्कर भी खाने पड़े और सुविधा शुल्क भी कर्मचारी आकर ले गये लेकिन पेंशन के नाम पर एक कागज भी आज तक नहीं मिला।
कुल मिलाकर यहां के लोगों को विकास के नाम पर आज तक सिर्फ धोखा ही मिला है। अब देखना यह है कि शासन-प्रशासन के साथ जनप्रतिनिधियों की निगाह इस बस्ती की ओर कब पड़ती है।
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पानी के चक्कर में जाना पड़ता है जेल
जौनपुर : दलित बस्ती के लोगों ने बताया कि जब वे लोग कभी पानी लेने के लिए भण्डारी रेलवे स्टेशन जाते है तो जीआरपी के जवान उन्हें पकड़कर जेल भेज देते है। बाद में सैकड़ों रुपये खर्च करने के बाद लोग अपने घर आ पाते है। एक तो प्रशासन की ओर से इन्हें कोई सहायता नहीं मिलती ऊपर से पानी लेने स्टेशन पहुंचे लोगों को जेल भेजकर बहादुरी का परिचय दिया जाता है।
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विकास के बहुत किये गये प्रयास
जौनपुर : इस मोहल्ले की सभासद श्रीमती रेखा श्रीवास्तव ने बताया कि इस बस्ती के विकास के लिए वह प्रयासरत है और हाल ही मे दो लाख की लागत से इंटरलाकिंग मार्ग बनवाया गया है। इसके साथ ही बिजली, पानी व जलनिकासी के साथ गरीबी रेखा का राशन कार्ड बनवाने के लिए वह प्रयास कर रही है।

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