शुक्रवार, 24 सितंबर 2010

बीबीसी से साभार - सावधान जानवरों में जातिवाद फ़ैल रहा है ! दलित ने छुआ तो कुत्ता हुआ अछूत

प्रवीण चित्रांष

'दलित' शेरू
इसी पालतू कुत्ते शेरू को उसके मालिक ने इसलिए घर से निकाल दिया क्योंकि इसे एक दलित महिला ने रोटी खिला दी थी.
मध्य प्रदेश के मुरैना ज़िले में एक राजपूत परिवार के पालतू कुत्ते, 'शेरू' को भेदभाव का शिकार होना पड़ा है.
शेरू को एक दलित महिला ने रोटी खिला दी जिसके बाद उसका मालिक उसे घर में रखने को तैयार नहीं.
सोमवार को कुत्ते पर फ़ैसला करने के लिए गाँव की पंचायत बैठी जिसने ये तय किया कि क्योंकि दलित महिला ने कुत्ते को अछूत बनाया है, इसलिए अब उसे ही कुत्ते को रखना होगा.
पंचायत ने महिला पर 15,000 हज़ार रूपए का जुर्माना भी लगाया.
कुत्ते को गाँव के दलित बहुल इलाक़े में एक खंभे से बाँधकर रख दिया गया.
इस महिला ने मामले की जानकारी पुलिस को दी लेकिन उसका आरोप है कि अबतक इस मामले में एफ़आईआर दर्ज नहीं किया गया है.
अब इस अछूत क़रार दिए गए कुत्ते का विवादित मामला मुरैना के ज़िला अधिकारी, पुलिस और अनुसूचित जाति के ख़िलाफ़ हुए मामलों की सुनवाई करनेवाले हरिजन थाना के पास पड़ा है.

मामला


पंचायत के आदेश के मुताबिक शेरु को अब इस दलित महिला सुनीता के साथ रहना होगा.
मुरैना के एक गाँव मानिकपुर में एक दलित महिला, सुनीता जाटव ने गाँव के उच्च जाति के एक प्रभावशाली किसान, अमृतलाल किरार के पालतू कुत्ते को एक रोटी खिला दी.
दरअसल सुनीता अपने पति चंदन जाटव के लिए खाना लेकर गई थी जो खेतों में काम कर रहा था.
चंदन के खाना खाने के बाद जो रोटी बच गई वो उसकी पत्नी ने इस कुत्ते को खिला दी.
कुत्ते के लिए ये रोटी उसके मुसीबत की जड़ बन गई.
कुत्ते के मालिक अमृतलाल ने उसे रोटी खाते देख लिया और सुनीता पर भड़क गया.
अमृतलाल का कहना था कि रोटी खिलाकर सुनीता ने कुत्ते को अछूत बना दिया.
इस बीच हरिजन थाने के डीएसपी बलदेव सिंह का कहना है कि वो मामले की जाँच कर रहे हैं.


दलित ग्राम प्रधान को गाँव से निकाला

उत्तराखंड की दलित महिला ग्राम प्रधान
पंचायत चुनावों में जीतने वाली महिलाओं के बारे में इस तरह का ख़बरे लगभग भारत के हर राज्य से आती रहती हैं.
उत्तराखंड की एक दलित महिला ग्राम प्रधान को गाँव के तथाकथित ऊंची जाति के लोगों ने गाँव से बाहर निकाल दिया है.
विधो देवी नाम की इस ग्राम प्रधान ने अपने साथ हुई इस ज़्यादती की शिकायत शासन से करते हुए दोषियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की माँग की है.
घटना को हुए 10 दिन से ज़्यादा हो चुके हैं लेकिन इस मामले में प्रशासन के स्तर पर अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है.
निर्वोरोध प्रधान
इस पहाड़ी राज्य में दलितों के साथ भेदभाव कोई नई बात नहीं हैं लेकिन राजधानी देहरादून से क़रीब 90 किलोमीटर दूर इस दलित महिला ग्राम प्रधान को जिस तरह दर-दर भटकना पड़ रहा है उससे पंचायती राज व्यवस्था की सार्थकता पर सवाल उठ रहे हैं.
विधो देवी ने प्रशासन को जो शिकायत पत्र दी है उसके मुताबिक़ वे कालसी तहसील के गैंग्रो गांव की आरक्षित सीट से निर्विरोध प्रधान चुनी गई थीं.
उनका कहना है कि गाँव के तथा कथित ऊँची जाति के प्रभावशाली लोग यह बात सहन नहीं कर पाए और उन्होंने विधो देवी को प्रधान मानने से ही इनकार कर दिया.
मुझे गांव की प्रधानी नहीं चाहिए. मेरा निवेदन है कि मेरे परिवार के रहने की व्यवस्था की जाए.''
विधो देवी, गैंग्रो गांव की प्रधान
पंचायत की बैठकों की अध्यक्षता करने की बात तो दूर उन्हें सरेआम अपमानित कर बैठकों में घुसने ही नहीं दिया जाता था.
उनकी अनुपस्थिति में ही योजनाएँ बनाई जाने लगीं और बैठक की कार्यवाही पर कथित तौर पर उनसे जबरन दस्तख़त करा लिए जाने लगे.
इन तथाकथित ऊँची जाति के लोगों ने उन पर सामूहिक भोज देने का दंड लगाकर उस दिन उन्हें गाँव से निकाल दिया जिस दिन पूरा देश स्वतंत्रता दिवस मना रहा था.
विधो देवी आज अपने पति मंगल दास और बच्चों के साथ दर-दर भटक रही हैं .
बीबीसी से उन्होंने कहा, ''मुझे गांव की प्रधानी नहीं चाहिए. मेरा निवेदन है कि मेरे परिवार के रहने की व्यवस्था की जाए.''
वे कहती हैं, ''जिन लोगों ने मेरे साथ ऐसा किया है वे दबंग लोग हैं, हम तो छोटे लोग ठहरे. मुझे तो अब वहाँ लौटने में भी डर लग रहा है.''
गाँव वालों की चुप्पी
उधर, गैंग्रो गाँव में लोग इस घटना के बाद से चुप्पी साधे हुए हैं. इस पर बात करने को कोई तैयार नहीं है.
इस संबंध में संपर्क करने पर कालसी के एसडीएम इला तोमर ने कहा, ''यह बहुत दुखद घटना है.जल्द ही इसकी जांच कराकर दोषियों को सज़ा दी जाएगी.''
घटना को शर्मनाक बताते हुए दलित लेखक ओमप्रकाश वाल्मीकि कहते हैं, ''उत्तराखंड में दलितों की भयावह स्थिति है. इस विषय पर सरकार और बुद्धिजीवियों की भूमिका भी संदिग्ध है.''
उन्होंने कहा, ''कोई इस पर बात करने को तैयार नहीं है. इसे बहुत स्वाभाविक ढँग से लिया जाता है. इस तरह के मामलों पर वे चुप हैं और सवर्णों के ही साथ है.''
पंचायती राज के लिए काम कर रहे ग़ैर सरकारी संगठन 'रूलक' के अध्यक्ष अवधेश कौशल कहते हैं, ''ये बहुत दुर्भाग्यपूर्ण मामला है. यह न्याय व्यवस्था और सरकार की ज़िम्मेदारी है कि वह उस दलित महिला को उसके पद पर दुबारा बहाल कराए. यह सुनिश्चित किया जाए कि वह गाँव में सम्मानजनक तरीके से रह सके.”

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