सोमवार, 5 जुलाई 2010

राहुल से कुछ सवाल

(अमर उजाला से साभार)
तवलीन सिंह
Story Update : Sunday, July 04, 2010    9:47 PM
पिछले दिनों भारत के युवराज साहब का जन्मदिन था। राहुलजी, क्योंकि अकसर देश के देहाती क्षेत्रों की धूल खाया करते हैं, गरीबों के गरीबखानों में कई-कई रातें गुजारते हैं, जन्मदिन की खुशी में विदेश यात्रा पर निकल पड़े। उनकी गैरहाजिरी में उनके भक्तों ने हर तरह से उनका जन्मदिन मनाया। मंदिरों में उनकी लंबी उम्र के लिए दीये जलाए गए, खास पूजन हुए, किसी जयपुरवासी ने राहुल चालीसा लिख डाली, युवाओं ने रक्तदान किया, आतिशबाजियां हुईं, कविताएं पढ़ी गईं और देश के अखबारों में उनकी खूब तारीफें पढ़ने को मिलीं।
राहुलजी की लोकप्रियता इतनी है कि हम पत्रकारों पर स्वाभाविक ही असर होना ही था। सो, भारतीय मीडिया में आपको राहुलजी के प्रशंसक ज्यादा और आलोचक कम मिलेंगे। दूसरी बात यह है कि हम पत्रकारों में एक अनकही मान्यता-सी है, राहुलजी देश के अन्य युवराजों से कहीं ज्यादा अच्छे हैं। भारत में युवराजों की बहार-सी आई हुई है, कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक।
कश्मीर में अगर उमर अब्दुल्ला हैं, तो पंजाब में सुखबीर सिंह बादल और उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव। दक्षिणी राज्यों की तरफ देखें, तो तमिलानाडु में करुणानिधि के कई वारिस हैं, जिनमें दो भावी युवराज आजकल गद्दी के लिए झगड़ रहे हैं। आंध्र की गद्दी को हासिल करने के लिए जूझ रहे हैं स्वर्गवासी मुख्यमंत्री, वाईएसआर रेड्डी के पुत्र जगन। युवराजों की इस भीड़ में राहुलजी हीरे की तरह चमकते हैं, शायद इसलिए हम भारतीय पत्रकारों के मुंह से आप एक शब्द आलोचना का नहीं सुनेंगे, राहुलजी को लेकर।
विदेशी पत्रकारों की लेकिन और बात है। अपने युवराज साहब के जन्मदिन पर भी वे आलोचना करने में लगे रहे। पहले तो अमेरिका के प्रसिद्ध ‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ ने राहुलजी का मजाक उड़ाते हुए लिखा कि भारत देश उनकी विरासत है और वह जब चाहे, उसको हासिल कर सकते हैं। ब्रिटेन के ‘इकोनॉमिस्ट’ अखबार ने ऐसी ही धुन आलापते हुए लिखा कि राहुल गांधी का वाहन है भारत देश, जिसको आजकल मनमोहन सिंह चला रहे हैं, लेकिन राहुलजी जब चाहें, अपनी गाड़ी की चाबी वापस मांग सकते हैं। दोनों अखबारों ने आलोचना की कि राहुलजी इतनी अहम जगह पर विराजमान होने के बावजूद अभी तक आर्थिक और राजनीतिक नीतियों को लेकर मौन हैं। अभी कोई नहीं जानता कि उनके राजनीतिक-आर्थिक विचार क्या हैं।
सच पूछिए, तो यह पढ़कर एक जिम्मेदार राजनीतिक पंडित होने के नाते मैं खुद गहरी सोच में पड़ गई। वास्तव में, राहुलजी देश के सबसे बड़े नेता हैं, आजकल। उनका कुसूर नहीं कि कांग्रेस पार्टी उनकी खानदानी कंपनी बनकर रह गई है और वह इस कंपनी के सीईओ हैं। न ही इसमें उनका कोई कुसूर है कि भारत के अन्य राजनीतिक दलों का आज बुरा हाल है। मार्क्सवादी दलों के अलावा भारतीय जनता पार्टी ही एक पार्टी है, जिसमें अभी तक खानदानी कंपनी की परंपरा नहीं चली है। उनके पास भावी नेता भी है, जिनका नाम नरेंद्र मोदी है, लेकिन गुजरात दंगों के कारण राष्ट्रीय स्तर पर उनकी छवि अच्छी नहीं है। ऐसी स्थिति में राहुलजी का प्रधानमंत्री बनना तकरीबन तय है, लेकिन अभी तक देशवासियों को बिलकुल नहीं मालूम है कि भारत की समस्याओं के बारे में वह क्या सोचते हैं। कुछ सवाल हैं, जिनके जवाब उनसे मांगना हमारा अधिकार है। राहुलजी जब गरीबों के घरों में रातें गुजारते हैं, तो वहां से सीखते क्या हैं? क्या कभी उनको खयाल आता है कि भारत का आम आदमी ६० वर्षों की स्वतंत्रता के बाद भी क्यों गरीब है? क्यों नहीं हम उसको दे पाए हैं, पीने के लिए साफ पानी और सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी? क्यों देश के अधिकतर किसान आज भी बारिश के पानी पर निर्भर हैं? गांव-गांव जब घूमते हैं इतने उत्साह से राहुल भैया, तो कभी सोचते हैं कि सड़कें इतनी टूटी-फूटी क्यों हैं? बिजली क्यों नहीं मिलती है, आम आदमी को २४ घंटे? एक छोटे मकान का सपना क्यों आम भारतीय देखता रहता है उम्र भर?
ये चीजें बुनियादी हैं, अन्य देशों के आम लोगों को अकसर उपलब्ध हैं, तो क्या कारण है कि लाखों-करोड़ों रुपये के निवेश के बावजूद हमारे देश में आम आदमी आज भी बेहाल है? राहुलजी जब दिल्ली की सड़कों पर घूमते हैं और लाल बत्तियों पर देखते हैं, तो चिलचिलाती धूप या बर्फ जैसी ठंड में छोटे बच्चों को काम करते देखकर क्या उनका दिल दुखता है? क्या उनको कभी यह खयाल आता भी है कि देश पर उनके परनाना ने राज किया, दादी ने राज किया, पिता ने राज किया और उनके बाद उनकी अम्मा की बारी आई। पिछले ६२ वर्षों में भारत पर तकरीबन उन्हीं के परिवार का राज रहा है, तो क्यों देश का इतना बुरा हाल है आज भी कि आम आदमी का जीवन विकसित पश्चिमी देशों के जानवरों से बदतर है? अधिकार है, दोस्तों, हमको इन थोड़े से सवालों के जवाब मांगने का अपने भावी प्रधानमंत्री से।

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