मंगलवार, 6 जुलाई 2010

मेरी कविता

 " आरक्षण "
उमराव सिंह जाटव
                                                                                                    
पहले तो बेटे के चयन पर
उधार के पैसों से मिठाई बाँटी
कि डाक्टर बनेगा बेटा
दासत्व के जुए को उतार
इज्ज़त कि रोटी खा पाएगा
लेकिन वही पिता
बुद्धन जाटव
अपने पूरे कुनबे के साथ
सिर पकड़े बैठा है अब /
कहाँ से लाएगा
पूरे पचास हज़ार वर्ष भर कि फीस?
उंगलियों पर गिनता है बार बार
एक नहीं पूरे पाँच वर्ष !!
ढाई लाख रुपया !!!
पेट के गर्त में चार रोटियाँ झोंकने के लिए
पूरे परिवार को बेगारी में जोत कर
पाता है चार हज़ार मासिक !
ऊपर से
उसके मालिक का बेटा
कक्षा का सबसे फिसड्डी विद्यार्थी
सिर्फ बाईस लाख में
खरीद लाया है प्रश्न पत्र
जो बिकते हैं खुले आम/
वही मालिक का बेटा
शीर्ष से तीसरे स्थान पर आया है
और बाज़ार से खरीदी गई अपनी प्रतिभा को भूल
मेडिकल कालेज में
सप्ताह भर से चिल्ला रहा है-
"आरक्षण प्रतिभा कि हत्या है,
आरक्षण बंद करो"
राम जतन बाल्मीकि
पूरे कुनबे के साथ
महीने भर गू-मूत में लिथड़ता है
अपमान,तिरस्कार,अवमानना से त्रस्त
दूसरों कि उतरन से तन ढाँपने के जतन में
रोज़ नंगा होता है पूरा परिवार/
बिटिया को उसने बचाए रखा
मनुवादियों द्वारा थोपी गई इस लानत से/
मनुस्मृति को जलाता रहा
शिक्षा कि महत्ता समझता रहा अपनों को/
बेटी जब छोटी थी
कंधे पर बैठा कर स्कूल पहुँचाता रहा,
अब जब सारी वर्जनाओं
सारी अवमाननाओं
दमन और अपमान को लाँघ कर
डिग्री कालेज में पहुँच गई है बिटिया
तो पूरा घर गुमसुम है,
पूरे पाँच मील पर है कालेज
और कंधा छोटा पड़ गया है पिता का
साइकल माँग कर बेटी ने
आँखों के सामने अंधेरा धर दिया है!!
उंगलियों पर बार बार गिनता है राम जतन
" हे भगवान ! बाईस सौ रुपया !!!
पूरे पाँच प्राणी ,और
दूसरों का हगा हुआ सड़ांध भरा महीना
सिर्फ पाँच हज़ार रुपया "
कहाँ से लाएगा राम जतन?
तो क्या पंजा, टोकरा,झाड़ुओं के साहचर्य में ही
कटेगा बेटी का जीवन!
ऊपर से बेटी कि सहपाठिन
जो विद्यालय में आती है
फोर्ड आइकन वातानुकूलितकार में
सप्ताह भर से चीख रही है कालेज में-
"शिक्षा के माथे पर कलंक है आरक्षण
आरक्षण कि सुविधा पर सवार लोगों को
घुसने नहीं देंगे कालेज में-पैदल भी साइकल पर भी"



अमित खटीक
अपनी महनत,अध्यन,प्रतिभा के बल पर
विपन्नता,अभावों,दारिद्र्य से जूझता
तानों तिरस्कारों को भोगता
ग्रीष्मवकाश में मजदूरी कर
पुस्तकों का खर्च उठा कर
90 प्रतिशत अंक पाकर हुलसाया
खटीक मुहल्ले ने सप्ताह भर जश्न मनाया
इंजीनीयरिंग में अगड़ों को भी पछाड़
जनरल में प्रवेश पा कर इतराया/


मेधावी मेधावी कह कर
गुरुजनों ने थपथपाया/
वही अमित खटीक
जो कल कालेज कि आँख का तारा था
आज मुँह छुपाता फिर रहा है !
क्योंकि
करोड़पति हलवाई का बेटा
बाज़ार में खुले आम बिक रहे पर्चों को हल कर
छात्रावास में उसके कमरे का सहवासी बन
अपने गिरोह के साथ प्रताड़ित कर रहा है-
" आरक्षण के बल पर आया है ।
मेरिट का अपमान है आरक्षण। मुर्दाबाद"
98 प्रतिशत अंक अमित के !
क्या वे भी आरक्षण से मिले थे?
सोच कर परेशान है अमित/
लेकिन आरक्षण विरोधी परेशान नहीं हैं-
उनके पास मेरिट खरीदने के सहज साधन हैं/




जिन बेचारों के पास
किताबें क्रय करने तक कि औकात नहीं
क्या प्राइवेट नर्सिंग होम चलाएँगे!!
और उधर अमीरों के नर्सिंग होमों में
पैसे के बल पर मेरिट खरीदनेवाले
गरीब बेबस मज़लूमों कि किडनियाँ
धोखे से निकालनेवाले
भीख मांगनेवाले गिरोहों के लिए
बेबसों कि टाँगे काटनेवाले
गर्भ में पलती कन्या को सूंघते तलाशते
गर्भ में ही उसकी हत्या करने वाले
अस्पताल कि दवाओं को बाज़ार में बेचनेवाले
हर अनैतिक कर्म,हर अवैधानिक कार्य
का आरक्षण अपने नाम कर लेनेवाले
खरीदी गई महान प्रतिभा के धनी
गले में स्टेथो लटकाए
गली गली चीख रहे हैं-
"आरक्षण मुर्दाबाद"



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